किताबी ज्ञान
" भगवान बड़े दयालु हैं " यह हम किसी किताब में पढ़ लें और सबसे कहना भी शुरू कर दें तो यह केवल किताबी ज्ञान ही हुआ. लेकिन रहस्य की बात यह है कि जब हम भगवान को दयालु कहते हैं तो भगवान तो हमारी परीक्षा नहीं लेते पर चूँकि विरोधी शक्तियों को भगवान की प्रतिष्ठा से बड़ी चिड होती है, वे नहीं चाहतीं कि भगवान का प्रभाव फैले, वे फ़ौरन ही हमारे ऊपर अनगिनत परेशानियों को डालना शुरू कर देती हैं.
और यही समय हमारे किताबी ज्ञान को अनुभव ज्ञान में बदलने का होता है. इस दृष्टि से देखा जाये तो विरोधी शक्तियों के द्वारा हम पर डाली गयी परेशानियाँ हमें अनुभव ज्ञान से पूर्ण करने आती हैं. बस प्रश्न यह उठता है कि भगवान जो कि सर्वशक्तिमान हैं ऐसे समय में हमारी मदद क्यों नहीं करते. पर विचार किया जाये तो यह स्पष्ट मालूम पड़ता है कि भगवान तो केवल इसलिए चुप थे कि वो भी हमें शक्तिशाली ही देखना पसन्द करते हैं.
किताबों में जो लिखा है वो सब दूसरों का अनुभव है. उसके द्वारा वे बताना चाहते हैं कि यदि हम इन बातों को प्रयोग में लायेंगे तो हमारे जीवन में भी वह सब प्राप्त हो जायेगा जो उन्हें प्राप्त था या है. इसलिए जब तक हम स्वयं किसी बात का अनुभव न कर लें हमें वह बात दूसरों से नहीं कहनी चाहिए. इसके द्वारा हम अपने ऊपर विरोधी शक्तियों के आक्रमण का द्वार खोल देतें हैं.
साधारण जीवन में भी हमें कभी बड़ - चढ़ कर बातें नहीं करनी चाहिए. उदाहरण के लिए हम कार चलाना सीख रहे हैं अब किसी ने पूछा कि क्या तुम्हें कार चलाना आता है तो यह कभी नहीं कहना चाहिए कि हाँ. हमारे अन्दर एक आत्मविश्वाश होता है जब तक यह आत्मविश्वाश यह न कह दे कि हमें कार चलाना आ गया है तब तक हमारा उत्तर केवल यह होना चाहिए कि अभी हम सीख रहे हैं. यहाँ यह नहीं सोचना चाहिए कि यहाँ तो हम कार चलाना सीख ही रहे हैं इसमें किताबी ज्ञान की तो कोई बात नहीं है पर व्यवहारिक जगत में किसी कम को सीखे
बगैर उसको सीखा हुआ कहना भी किताबी ज्ञान ही है
Sunday, January 30, 2011
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