श्री माँ का अवतरण
श्री माँ का अवतरण २१ फ़रवरी १८७८ को फ्रांस में हुआ था. श्री माँ के जीवन की घटनायों को देना यहाँ अभिप्रेत नहीं है. और किसी अवतार के जीवन की घटनायों के बारे में बताने से शायद उस अवतार का हम एक प्रतिशत भी परिचय नहीं दे पाते हैं. वस्तुतः हम किसी अवतार का पूर्ण परिचय तो दे ही नहीं सकते हैं. यह तो केवल इसलिए किया जाता है की उसके स्मरण से उसने हमारे लिए जीवन का जो लक्ष्य बताया होता है हम उस ओर प्रगति करते हैं.
श्री माँ भागवत चेतना की अवतार हैं. चेतना दो रूपों में कार्य करती है -- एक ज्ञान के रूप में, दूसरे शक्ति के रूप में.
श्री माँ के शब्दों में -- पृथ्वी पर जब कहीं जहाँ कहीं चेतना की एक किरण को अभिव्यक्त करने की सम्भावना थी मैं वहाँ उपस्थित थी.
भागवत चेतना त्रिविध रूप में निरंतर रहती है. ये त्रिविध रूप हैं -- परात्पर, सर्वव्यापक आत्मा और जीवात्मा. जब जब पृथ्वी पर व्यक्तिरूप लेकर कार्य करना अपरिहार्य हो जाता है तब यह चेतना एक रूप लेकर आविर्भूत हो जाती है. यही अवतार रूप कहलाता है. अवतार को कोई कर्मबंधन नहीं होता. यह तो केवल लोककल्यानार्थ प्रेमवश अवतरित होता है.
यह अवतार अपने जीवनकाल में स्वयं दिव्य होने पर भी बार- बार अपने को पृथ्वी चेतना से जोड़ता है. और तब ऊपर को उठता है. इससे पृथ्वी चेतना का विकास होता है. परन्तु कुछ समय बाद पृथ्वी चेतना अपने को अलग कर लेती है. तब यह अवतार पुनः पृथ्वी चेतना से अपने को जोड़ने के लिए नीचे उतरता है. शरीर रहते यह उतरना बड़ा विलक्षण होता है.
कुछ लोगों की धारणा है कि अवतार को कोई पीड़ा नहीं झेलनी पड़ती. वास्तव में इसका ठीक उल्टा होता है. अवतार के हर बार के अवतरण में पृथ्वी कि सारी पीड़ाएं भी उससे जुड़ जाती हैं. इन पीड़ाओं पर विजय पाते हुए ही वह ऊपर को उठता है. इन विजयों से सर्वप्रथम सूक्ष्म जगत में इन पीड़ायों का नाश हो जाता है परन्तु स्थूल जगत ( पृथ्वी ) तक इन विजयों को अभिव्यक्त होने में अधिक समय लगता है. श्री माँ ने एक जगह बताया था कि उन्होंने कैंसर रोग को सूक्ष्म जगत में नष्ट कर दिया है.
यहाँ पर अवतार के कार्यों के एक संछिप्त से वर्णन के द्वारा परोक्ष रूप से श्री माँ की आतंरिक कार्य - विधि का थोड़ा सा दर्शन कराया गया है. लेख का आकर समुचित रखने हेतु इस लेख का पर्यवसान किया जाता है.
Tuesday, February 22, 2011
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