ईश्वर एक है. पर वह अनंत रूपों में अपने को अभिव्यक्त करता है. इसलिए भ्रमवश व्यक्ति उसको अनेक मान लेते हैं. चूँकि प्रत्येक अभिव्यक्ति के दर्शन के लिए भिन्न - भिन्न मार्ग हैं इसलिए उसको पाने के मार्ग भी अनेक हैं. परन्तु चूँकि प्रत्येक मार्ग का लक्ष्य ईश्वर ही है, हमें अपने मार्ग पर चलते हुए भी अन्य मार्गों के प्रति सहिष्णु होना चाहिए.
जो यह जान जाता है कि वह एक ईश्वर अपने को अनंत रूपों में अभिव्यक्त कर सकता है और प्रत्येक अभिव्यक्ति के दर्शन के लिए एक अलग मार्ग है वह अपने मार्ग पर चलने के लिए अन्य व्यक्तियों को बाध्य नहीं करता. उसे तो ये अनेक मार्ग ऐसे लगते हैं जैसे कि एक बगीचे में विभिन्न प्रकार के फूल खिले हों. इन फूलों के विभिन्न रूपों और विभिन्न प्रकार की सुगंधों से वह बहुत प्रसन्नता का अनुभव करता है. एक समझदार भक्त समझता है कि केवल एक फूल के अस्तित्व से तो केवल एक रूप और केवल एक प्रकार की सुगंध ही प्राप्त होगी.
दूसरी बात यह है कि जहाँ दो होते हैं वहाँ प्रतिस्पर्धा कि संभावना बनी रहती है. ईश्वर भी दो होते तो वहाँ भी प्रतिस्पर्धा हो सकती थी. फूलों के उदाहरण में भी क्योंकि यह एक भौतिक उदाहरण है, हम फूलों के रूप या सुगंध के आधार पर उनको ऊपर- नीचे का दर्जा दे सकते हैं. परन्तु भगवान अपनी हर अभिव्यक्ति में पूर्णतयः समान होते हैं. हम अपनी मनुष्य- बुद्धि के कारण उनकी अभिव्यक्तियों में ऊपर- नीचे का भाव रखने की गलती कर सकते हैं.
जहाँ ईश्वर है वहाँ काल नहीं है. पर हम अपने समझने के लिए कहते हैं कि सृष्टि से पहले केवल एक ईश्वर था. तो क्या सृष्टि हो जाने पर दो वस्तुएं अस्तित्व में आ गयीं. नहीं ऐसा नहीं है. वह ईश्वर ही एक से अनेक हो गया है. यह अनेकता ही सृष्टि है .परन्तु समग्रता में देखने पर सृष्टि कुछ नहीं केवल ईश्वर ही है. वह ( ईश्वर ) अनेक होकर भी एक ही है. अनंत तक विस्तृत अनेक वही ( ईश्वर ) बना हुआ है. यही ज्ञान है. इसकी सिद्धि ही भगवत - प्राप्ति है.
Wednesday, September 28, 2011
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