भागवत चेतना से सचेतन सहयोग
भागवत चेतना निरंतर सबके विकास के लिए सक्रिय है. वह पत्थरों, पेड़- पौधों, पशुओं और मनुष्यों सभी में निरंतर विकास कर रही है. प्रश्न उठता है कि यदि पत्थर के विकास से पेड़ - पौधों के बीज बने तो जब पेड़ - पौधे अस्तित्व में आये तो पत्थरों का अस्तित्व समाप्त हो जाना चाहिए था. परन्तु ऐसा नहीं है. समष्टि विकास अपनी प्रक्रिया में व्यष्टि का अस्तित्व प्रकट करता है. और विकास दो रूपों में विभाजित हो जाता है.पत्थरों के समष्टि विकास से कुछ पत्थरों को व्यष्टि अस्तित्व प्रदान किया गया.यही प्रथमतः पेड़ - पौधों के मूल बीज बने. इसी प्रकार पेड़ - पौधों में भी कुछ विकसित व्यष्टियाँ प्रकट हुयीं. जिनसे पशुयों का अस्तित्व प्रकट हुआ. फिर पशुयों में भी विकास समष्टि रूप के साथ साथ कुछ विशिष्ट व्यष्टियाँ प्रदान करने का हुआ. और इससे मनुष्य जाति प्राप्त हुई. मनुष्य में भी इसी प्रकार विशिष्ट व्यष्टियाँ प्रकट हो रही हैं. ये विशिष्ट व्यष्टियाँ, वर्तमान सन्दर्भ में, विशिष्ट व्यक्ति भागवत चेतना के प्रति सचेत हो जाते हैं. ऐसे व्यक्ति भागवत चेतना हमें जिस अंतिम लक्ष्य की ओर ले जाना चाहती है उसमें सहयोग कर सकते हैं. यह सहयोग वे ह्रदय के शुद्ध प्रेम यानि भक्ति योग , भागवत ज्ञान के लिए जिज्ञासा यानि ज्ञान योग और अपनी कामनायों का अभाव करके भी कर्म करके यानि कर्म योग के द्वारा देते हैं. बाद में उनमें ये तीनो योग एक साथ उपलब्ध हो जाते हैं और वे भागवत चेतना को सहयोग देने में सचेतन यंत्र बन जाते हैं.
Tuesday, September 27, 2011
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